छत्तीसगढ़

सुरक्षित स्वास्थ्य के लिए जीवाणुमुक्त सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने जल मंथन का आयोजन

रायपुर

जलजनित रोगों से लोगों को बचाने और जीवाणुमुक्त सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा जल मंथन का आयोजन किया गया। स्वास्थ्य विभाग के साथ ही जल आपूर्ति से जुड़े विभागों के अधिकारी, जन प्रतिनिधि, यूनिसेफ, स्वच्छ भारत मिशन, राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र (एसएचआरसी) तथा गैर-सरकारी संगठन जपाईगो एवं समर्थन के प्रतिनिधि और विशेषज्ञ बैठक में शामिल हुए। बैठक में विशेषज्ञों ने जीवाणुमुक्त सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति, उपयोग और जलजनित बीमारियों से लोगों को बचाने प्रभावी रूपरेखा तैयार करने के संबंध में महत्वपूर्ण सुझाव दिए। रायपुर के नवीन विश्राम भवन में आज जल मंथन का आयोजन स्वास्थ्य विभाग के राज्य महामारी प्रकोष्ठ द्वारा समर्थन झ्र सेन्टर फॉर डेवलपमेंट सपोर्ट संस्था के सहयोग से किया गया था। महामारी नियंत्रण के संचालक डॉ. सुभाष मिश्रा और रायपुर के पंडित जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय में कम्युनिटी मेडिसीन के विभागाध्यक्ष डॉ. निर्मल वर्मा भी बैठक में शामिल हुए।

जल मंथन में स्वास्थ्य, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, स्कूल शिक्षा तथा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने जल परीक्षण, जल स्त्रोतों के उपचार एवं स्वास्थ्य के संदर्भ में जारी होने वाली सूचनाओं में एकरूपता लाने का सुझाव दिया। बैठक में विशेषज्ञों ने स्कूलों, कॉलेजों एवं अन्य शैक्षणिक संस्थाओं के माध्यम से सुरक्षित पेयजल के संबंध में जागरूकता तथा स्कूलों की प्रयोगशाला के माध्यम से जल परीक्षण बढ़ाए जाने का सुझाव दिया। उन्होंने सुरक्षित पेयजल के लिए सामुदायिक भागीदारी एवं जन-जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने इसके नियोजन एवं क्रियान्वयन में स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका एवं साझेदारी के महत्व को भी रेखांकित किया।

बैठक में ग्राम पंचायत विकास योजना, स्वच्छता, स्वास्थ्य आदि कार्ययोजना में जल स्त्रोतों की निगरानी एवं उपचार के कार्यों को प्राथमिकता देने पर विचार किया गया। जल परीक्षण के बाद जीवाणु संक्रमण की रिपोर्ट लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से स्वास्थ्य विभाग को तुरंत प्राप्त होने पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा उपचार के कार्य प्राथमिकता से किए जा सकते हैं। इसी तरह जलजनित बीमारियों की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग द्वारा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को भी उपलब्ध कराना चाहिए ताकि पानी का परीक्षण एवं स्त्रोत का उपचार किया जा सके।

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