भोपालमध्य प्रदेश

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का बड़ा कदम, सरपंच पति प्रथा पर 24 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों के अधिकारियों को समन जारी

भोपाल
 सरपंच पति प्रथा पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने सख्त कदम उठाया है। देश के 24 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेशों के प्रमुख अधिकारियों को समन जारी किया है। महिला जन प्रतिनिधियों के अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का यह बड़ा कदम है।

प्रमुख सचिवों को भी समन जारी

इसी कड़ी में मध्यप्रदेश के पंचायत एवं नगरीय निकाय विभाग के प्रमुख सचिवों को भी समन जारी हुआ है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने यह जानकारी दी। आयोग ने सभी प्रदेशों के पंचायत और शहरी निकाय विभाग से इस विषय पर कार्यवाही रिपोर्ट मांगी थी।

रिपार्ट नहीं मिलने पर मध्य प्रदेश को भी समन

शहरी निकाय और पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिवों को 30 दिसंबर को आयोग के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के निर्देश दिए है। 22 दिसंबर 2025 तक रिपोर्ट भेजने पर व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट मिल सकती है। रिपोर्ट नहीं देने और व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं होने पर आयोग ने कठोर कार्रवाई करने की बात कही है।

यह प्रथा समानता, गरिमा और जीवन के अधिकार का उल्लंघन

दरअसल प्रियंक कानूनगो की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपनी जांच में पाया कि यह प्रथा समानता, गरिमा और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। यह 73वें एवं 74वें संविधान संशोधनों की भावना के विपरीत है। जिनका उद्देश्य महिलाओं को वास्तविक सशक्तिकरण प्रदान करना है। ऐसे कृत्य भारतीय न्याय संहिता 2023 के तहत आपराधिक दायित्व को भी जन्म दे सकते हैं।

लोकतांत्रिक मूल्यों और महिलाओं की गरिमा के खिलाफ

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने पंचायत राज संस्थानों और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर प्रधान पति कार्यप्रणाली को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य सुशील वर्मा की ओर से दायर शिकायत पर कदम उठाया है। सुशील वर्मा ने अपनी शिकायत में दावा किया था कि देश भर में कई स्थानों पर निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति अथवा अन्य पुरुष रिश्तेदार वास्तविक सत्ता का प्रयोग कर रहे हैं, जो कि लोकतांत्रिक मूल्यों और महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है।

प्रॉक्सी शासन लोकतंत्र पर सीधा प्रहार

आयोग ने दो टूक कहा है कि महिला आरक्षण का उद्देश्य केवल प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि वास्तविक नेतृत्व और निर्णयकारी भूमिका सुनिश्चित करना है, और किसी भी प्रकार का प्रॉक्सी शासन लोकतंत्र पर सीधा प्रहार है। यह आदेश महिला सशक्तिकरण, संवैधानिक शासन और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की गरिमा की रक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

मप्र में उठे थे मुद्दे

ग्वालियर में सितंबर में मामला आया था। कलेक्टर रुचिका सिंह चौहान की बैठक में पार्षद पति पहुंच गए थे। शहर की समस्याओं पर चर्चा के लिए बुलाई गई बैठक में पार्षद पति पहुंच गए थे। चार महिला पार्षदों की जगह उनके पति पहुंच गए थे।
कलेक्टर ने पार्षद पतियों को कुर्सी से उठाकर पीछे बैठा दिया था। कलेक्टर ने कहा था- अब महिलाएं सबल हैं, पत्नियों को ही काम करने दीजिए।

अक्टूबर में गुना नगर पालिका ने निकाला आदेश

सीएमओ मंजूषा खत्री ने आदेश निकाला। आदेश में कहा कि- शासकीय कार्यालयों और बैठकों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के साथ उनके पति या पत्नियों की उपस्थिति पूर्णतः प्रतिबंधित है। नगरपालिका कार्यालय में आने पर भी पार्षद पतियों और उनके रिश्तेदारों पर रोक लगाई गई।

अप्रैल 2025
रतलाम जिला पंचायत में मुददा उठा था। साधारण सभा की बैठक में विवाद हुआ था। जिला पंचायत उपाध्यक्ष केशू निनामा और सदस्य डीपी धाकड़ ने महिला सदस्यों के साथ बैठक में उनके पति के आने पर आपत्ति दर्ज कराई थी। सभा कक्ष में लंबी बहस हुई थी। विवाद के बीच बैठक नहीं हो पाई थी। 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button