नई दिल्ली
दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा एक बार फिर बिगड़ने लगी है। हर साल सांसों पर आने वाले इस संकट से आम आदमी से लेकर सरकार तक सभी परेशान हैं। दिल्ली की हवा में प्रदूषक कणों की मात्रा बढ़ती जा रही है। शुक्रवार को दिल्ली के सात इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 से पार यानी बेहद खराब श्रेणी में पहुंच गया। हालांकि, समग्र तौर पर अभी राजधानी में हवा खराब श्रेणी में ही है। इस बीच, दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण रोकने और हालात संभालने को अब प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने मोर्चा संभाल लिया है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक, शुक्रवार को राजधानी का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 256 अंक (खराब श्रेणी) पर रहा। गुरुवार को यह 220 अंक पर था, यानी चौबीस घंटे में 36 अंकों की बढ़ोतरी हुई। शुक्रवार को बवाना, मुंडका, एनएसआईटी द्वारका,नॉर्थ कैंपस, रोहिणी, नरेला, वजीरपुर का सूचकांक 300 के पार पहुंच गया।
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा ने शुक्रवार को दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण पर एक हाई लेवल टास्क फोर्स की बैठक की अध्यक्षता की और आगामी सर्दी के मौसम के मद्देनजर प्रतिकूल वायु गुणवत्ता के मुद्दे से निपटने की तैयारियों की समीक्षा की।
पीएमओ द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि पीएमओ में बैठक के दौरान मिश्रा ने चरणबद्ध कार्रवाई कार्ययोजना (जीआरएपी) के कार्यान्वयन, इसकी निगरानी और इसे लागू करने में सुधार के उपायों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि वायु गुणवत्ता खराब होने से रोकने के लिए सभी संबंधित हितधारकों द्वारा जीआरएपी के तहत सूचीबद्ध कार्यों का सख्ती से कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है। बयान में कहा गया कि यह बैठक सर्दियों के मौसम के निकट आते ही दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्रतिकूल वायु गुणवत्ता की समस्या से निपटने के लिए विभिन्न हितधारकों द्वारा की जाने वाली तैयारियों की समीक्षा के लिए आयोजित की गई।
बैठक में मिश्रा ने औद्योगिक प्रदूषण, वाहनों से होने वाले प्रदूषण, निर्माण एवं तोड़फोड (सी एंड डी) गतिविधियों से निकलने वाली धूल, सड़कों पर उड़ने वाली धूल, ठोस अपशिष्ट (एमएसडब्ल्यू) को जलाने समेत विभिन्न स्रोतों से होने वाले प्रदूषण के प्रभावों को कम करने के लिए किये जा रहे विभिन्न उपायों के बारे में विस्तार से चर्चा की। बयान में कहा गया कि बैठक के दौरान वायु प्रदूषण को कम करने के लिए हरियाली एवं पौधरोपण से जुड़ी पहल पर भी विचार-विमर्श किया गया।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के अध्यक्ष एम.एम. कुट्टी ने बताया कि एनसीआर के उद्योगों को स्वच्छ ईंधन की ओर स्थानांतरित किया जा रहा है और 240 औद्योगिक क्षेत्रों में से 211 को पहले ही सीएनजी कनेक्शन प्रदान किया जा चुका है। इसी तरह, 7,759 ईंधन-आधारित उद्योगों में से 7,449 पीएनजी या अप्रूव्ड ईंधन पर स्थानांतरित किए जा चुके हैं।
कुट्टी ने यह भी बताया कि ई-वाहनों में वृद्धि हुई है और वर्तमान में एनसीआर में 4,12,393 ई-वाहन रजिस्टर्ड हैं। ई-बसों और बैट्री चार्जिंग स्टेशन की संख्या भी बढ़ी है तथा अब दिल्ली में 4,793 ईवी चार्जिंग पॉइंट हैं। निर्माण और तोड़फोड़ संबंधी गतिविधियों से निकलने वाले मलबे के प्रबंधन के संबंध में, सीएक्यूएम ने सूचित किया कि 5150 टन प्रति दिन (टीपीडी) की क्षमता वाली पांच मलबा प्रसंस्करण सुविधाएं चालू हैं और 1000 टीपीडी क्षमता वाली एक और सुविधा दिल्ली में शीघ्र चालू होगी।
बयान में कहा गया कि हरियाणा में 600 टीपीडी क्षमता वाली सी-एंड-डी सुविधाएं चालू हैं और 700 टीपीडी क्षमता वाली सुविधाएं शुरू की जाएंगी। उत्तर प्रदेश में, 1300 टीपीडी वाली मलबा प्रसंस्करण सुविधाएं संचालित की जा रही हैं और दो सुविधाएं चालू की जाएंगी। सभी राज्यों से सी-एंड-डी मलबा प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाने का अनुरोध किया गया है।
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में धान की पराली जलाने की घटनाओं में कमी सुनिश्चित करने के प्रयासों के तहत प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव ने इन तीनों ही राज्यों के मुख्य सचिवों को इस पर पैनी नजर रखने के निर्देश दिए।
चर्चा के दौरान प्रमुख सचिव ने बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया जिसमें कई उपाय शामिल थे, जैसे कि बायोमास पेलेट की खरीद, विद्युत मंत्रालय द्वारा जारी बेंचमार्क मूल्य को अपनाना, मार्च 2024 तक पूरे एनसीआर क्षेत्र में गैस अवसंरचना का विस्तार करना एवं आपूर्ति करना तथा मांग पर बायोमास की शीघ्र आपूर्ति सुनिश्चित करना।