चंडीगढ़
2020 में पहले किसान आंदोलन और फिर 2023 में पहलवानों की नाराजगी…. इन दोनों मुद्दों ने हरियाणा में बीजेपी आलाकमान की मुश्किलें बढ़ाई हैं. लेकिन, 2024 से पहले बीजेपी ने 'जाटलैंड' में सबके गले-शिकवे दूर करने के लिए बड़ा दांव चल दिया है. पार्टी ने शुक्रवार को ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले नायब सिंह सैनी को हरियाणा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है. नायब इस समय कुरुक्षेत्र से सांसद हैं. वे 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विधायक भी रहे हैं.
2014 में नायब सिंह ने अंबाला जिले की नारायणगढ़ सीट से विधानसभा चुनाव जीता था. ये चुनाव नायब 24 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे. बाद में खट्टर सरकार में मंत्री बनाए गए. जब 2019 का चुनाव आया तो पार्टी ने नायब को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी और कुरुक्षेत्र से टिकट देकर चौंका दिया था. तब भी नायब सिंह संगठन के भरोसे पर खरे उतरे. 2019 के लोकसभा चुनाव में नायब को 6 लाख 88 हजार 629 वोट मिले. उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस उम्मीदवार निर्मल सिंह आधे वोट भी नहीं पा सके. निर्मल को 3 लाख 4 हजार 38 वोट मिल सके थे.
'नए फॉर्मूले के साथ मैदान में उतरी बीजेपी'
माना जा रहा है कि कांग्रेस के जातीय जनगणना और ओबीसी के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने हरियाणा में बड़ा दांव चला है. इसके साथ ही हरियाणा में अब तक चले आ रहे जाट प्रदेश अध्यक्ष और नॉन जाट सीएम के फॉर्मूले में बदलाव किया है. यही वजह है कि इस बार जाट की बजाय पूरे ओबीसी समुदाय को साधने की रणनीति बनाई है. बता दें कि खट्टर पंजाबी खत्री समाज से ताल्लुक रखते हैं.
'9 साल पहले विधायक… अब प्रदेश अध्यक्ष बने नायब'
नायब सिंह सैनी (53 साल) 2014 में मुख्य धारा की राजनीति में आए और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 9 साल के दरम्यान पहले विधायक बने, फिर राज्य सरकार में मंत्री, उसके बाद लोकसभा सांसद और अब संगठन में सबसे बड़ी जिम्मेदारी मिल गई है.
'धनखड़ के काम को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी'
ओबीसी नेता नायब सिंह सैनी ने जाट समुदाय के नेता ओम प्रकाश धनखड़ की जगह ली है. धनखड़ का कार्यकाल खत्म हो गया है. शुक्रवार को पार्टी ने धनखड़ को केंद्रीय टीम में जगह दी है और राष्ट्रीय सचिव बनाया है. 2024 से पहले नायब को प्रदेश अध्यक्ष चुनकर बीजेपी ने ना सिर्फ ओबीसी समुदाय को संदेश दिया है, बल्कि किसानों से लेकर पहलवानों की नाराजगी को दूर करने की तैयारी भी कर ली है. नायब पर संगठन में एकजुटता बनाए रखने और 2024 के चुनावी संग्राम में कैडर को मजबूत करने की जिम्मेदारी है.
'खट्टर के करीबी हैं नायब सिंह सैनी'
सैनी को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का भी विश्वासपात्र माना जाता है. संगठन में भी सैनी की पकड़ मानी जाती है. जब सैनी 2019 में सांसद बने तो बीजेपी ने ना सिर्फ हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, बल्कि पार्टी उम्मीदवारों ने बड़े अंतर से विपक्ष के प्रत्याशियों को पटखनी दी थी.
'ओबीसी समुदाय को मिली तवज्जो'
सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए कई मसलों को ध्यान में रखकर चुना गया है. हाल ही में कांग्रेस जातिगत आरक्षण का मसला उठा रही है और ओबीसी समुदाय को लेकर बीजेपी की घेराबंदी कर रही है. हरियाणा में ओबीसी समुदाय का दबदबा है. खासतौर पर जाटलैंड में बीजेपी अपनी पकड़ को ढीला नहीं होने देना चाहती है. यही वजह है कि पार्टी ने कम समय में ज्यादा पॉपुलर्टी पाने वाले नायक सिंह सैनी को सबसे बेहतर चेहरा माना. इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि खट्टर की पसंद का भी ख्याल रखा गया है.
'सीएम खट्टर की पसंद का रखा गया ख्याल'
सीएम खट्टर भी यही चाहते थे कि उनके खेमे का कोई नेता प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए, जिसके साथ सरकार और संगठन के बीच ठीक से तालमेल बैठाकर काम किया जा सके. सरकारी योजनाओं को संगठन के जरिए गांव-गरीब तक पहुंचाया जा सके. हालांकि, 2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सैनी की पहली राजनीतिक परीक्षा होगी. उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जब बीजेपी सरकार भारी एंटी इनकम्बेंसी से जूझ रही है. हरियाणा में सैनी जाति की आबादी करीब 8% मानी जाती है. कुरूक्षेत्र, यमुनानगर, अंबाला, हिसार और रेवाड़ी जिलों में अच्छी खासी संख्या है.
'धनखड़ के काम को आगे बढ़ाने की चुनौती'
जुलाई 2020 में ओम प्रकाश धनखड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. वे अब एक बड़े चेहरे के तौर पर उभर रहे थे. हरियाणा में धनखड़ के जरिए संगठन को ताकत देने का प्रयास किया गया. पिछले तीन वर्षों में धनखड़ ने कैडर को पन्ना लेवल तक मजबूती दी है. नए कार्यकर्ता जोड़े.
2020 में बीजेपी ने धनखड़ को प्रदेश संगठन की कमान सौंपकर राजनीतिक रूप से जाट समुदाय को साधने की कोशिश की थी. चूंकि, 2016 के हिंसक जाट आरक्षण आंदोलन के बाद बीजेपी को लेकर नाराजगी देखी गई है. जाट आरक्षण आंदोलन का सबसे ज्यादा असर हरियाणा में देखने को मिला था. उसके बाद किसान आंदोलन ने जाट समुदाय और बीजेपी के बीच दूरियां और बढ़ा दीं.
'जाट समाज पर रहती है हर दल की नजर'
2023 में पहलवानों की नाराजगी ने भी हरियाणा की राजनीति को प्रभावित किया है. ऐसे में बीजेपी की नजर अब नॉन जाट वोटों पर है. जाट समुदाय की राज्य में करीब 25% आबादी है. चुनाव में यह समाज किंगमेकर की भूमिका में देखा जाता है. बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक जाट समाज को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. हरियाणा सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में पिछड़ा वर्ग की आबादी 31 प्रतिशत है. जबकि अनुसूचित जाति की संख्या 21 फीसदी है.
'बीजेपी परिवार आधारित पार्टी नहीं…'
धनखड़ ने अपने उत्तराधिकारी सैनी को बधाई दी है. धनखड़ से जब नए चेहरे को जिम्मेदारी मिलने का सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, यहां कोई भी स्थायी नहीं है. बीजेपी कार्यकर्ता किसी भी जिम्मेदारी और भूमिका को निभाने के लिए हमेशा तैयार रहता है. हमारी पार्टी परिवार आधारित नहीं है. यह एक राष्ट्रीय पार्टी है, जिसमें बूथ प्रभारी से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बदलाव एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. धनखड़ ने 1978 में आरएसएस के प्रचारक के रूप में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी.