नई दिल्ली
पेट्रोलियम सेक्टर में जो तस्वीर बन रही है, उससे संकेत मिल रहे हैं कि चुनावों से पहले देश में पेट्रोल व डीजल डीजल की कीमतों में कमी की जा सकती है। वजह यह है कि दिसंबर, 2023 में भारत ने अंतरराष्ट्रीय बाजार से औसतन 77.14 डालर प्रति बैरल की दर से कच्चे तेल खरीदा है। भारत की तरफ से आयातित यह पिछले छह महीने की सबसे कम कीमत है। इस पूरे वित्त वर्ष के दौरान कच्चे तेल की कीमत सिर्फ दो महीने (सितंबर में 93.54 डालर और अक्टूबर में 90.08) ही कच्चे तेल की कीमत 90 डालर प्रति बैरल से ज्यादा रही है, जबकि शेष सात महीनों में न्यूनतम 74.93 डालर प्रति बैरल और अधिकतम 83.76 डालर प्रति बैरल रही है।
पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में 22 मई, 2022 के बाद से कोई बदलाव नहीं हुआ है। तब केंद्र सरकार ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कटौती की थी। नियमों के आधार पर अभी भी तेल कंपनियों को रोजाना इन उत्पादों की कीमतें तय करने का अधिकार है, लेकिन इन्होंने इस अधिकार का इस्तेमाल छह अप्रैल, 2022 के बाद नहीं किया है। इस दौरान भारत ने कच्चे तेल की खरीद अधिकतम 116 डालर (जून, 2022 की औसत कीमत) तक गई और न्यूनतम 74.93 (जून, 2023 की औसत आयात मूल्य) पर की, लेकिन खुदरा कीमतों में कोई बदलाव नहीं आया। अब जब आम चुनाव सिर पर है तो सरकार के भीतर खुदरा कीमतों को लेकर पिछले दिनों पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों ने सरकारी क्षेत्र की तीनों प्रमुख पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनियों के साथ बैठक भी की है।
सरकारी तेल कंपनियों की माली हालत काफी मजबूतः खुदरा कीमत के घटने की जो तस्वीर बन रही है उसके पीछे एक प्रमुख वजह यह भी है कि सरकारी तेल कपनियों की माली हालत काफी मजबूत बनकर उभरी है। चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में इंडियन आयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम व भारत पेट्रोलियम को संयुक्त तौर पर 58,198 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ है। जबकि पिछले वित्त वर्ष (2022-23) की पहली छमाही में इन तीनों कंपनियों को 3,805.73 करोड़ रुपये का संयुक्त तौर पर घाटा हुआ था। पिछले वर्ष इन कंपनियों को हुए घाटे की भरपाई के लिए केंद्र सरकार को बजट से आवंटन करना पड़ा था। तीसरी तिमाही (अक्टूबर- दिसंबर, 2023) में भी इन कंपनियों को जबरदस्त मुनाफे की संभावना के है। ऐसे में सरकार पर इन कंपनियों की माली हालत को लेकर कोई दबाव नहीं है। बहरहाल, इस बारे में फैसला उच्च स्तर पर ही लिया जाएगा।