भोपाल
बीजेपी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हाल ही में जारी चौथी लिस्ट में उनकी पारंपरिक सीट बुधनी से उम्मीदवार बना दिया है। इससे, उन अटकलों को विराम लग गया है, जिनमें यह बताया जा रहा था कि कद्दावर नेताओं की मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में एंट्री के बाद शिवराज सिंह चौहान का पत्ता कट गया है। शिवराज सिंह चौहान के रेस में आने के बाद कथित तौर पर उनकी उम्मीदों को झटका लगा है।
दरअसल, बीजेपी ने अपनी पहली लिस्ट में तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात सांसदों और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को विधानसभा चुनाव उतारा है। पार्टी के इस फैसले ने सियासी पंडितों को चौंका दिया था। इनमें केंद्रीय मंत्रियों प्रहलाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते और कैलाश विजयवर्गीय ऐसे नाम हैं, जिनका कद शिवराज सिंह चौहान के बराबर है। उनके आने से ये कयास लागए जाने लगे कि अब मामा की प्रदेश से विदाई तय है। पार्टी के जीतने की स्थिति में पांचवीं बार उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा।
वहीं, मध्य भारत के सबसे बड़े नेता और 'क्राउड पुलर' के रूप में शिवराज सिंह चौहान अपना सिक्का जमा चुके हैं। लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के चलते मध्य प्रदेश में हर स्तर पर उनसे ट्यूनिंग वाले नेता और पदाधिकारियों की फौज है। भाषण देने के दौरान पब्लिक के साथ उनका समन्वय देखते ही बनता है। कुछ प्रतिशत लोगों को भले ही उनके भाषण एक जैसे और उबाऊ लगते हो, लेकिन आम जनता इसे एंजॉय करती है।
इसके साथ ही सबसे बड़ी बात, उनकी सहजता और सरलता पब्लिक से आसानी से 'कनेक्ट' हो जाती है । उनके करीब 19 वर्ष मुख्यमंत्री रहने के बावजूद लोकप्रियता का ग्राफ ऊंचा ही उठा है।
यदि, हम बीजेपी की शुरुआती सूचियों का आकलन करें तो पाएंगे कि हारी हुई विधानसभाओं के लिए ही उम्मीदवार घोषित किए थे। बुधनी से जीते शिवराज सिंह चौहान को उन सूचियों में शामिल करने के कोई मायने ही नहीं थे। हां, इनमें नाम नहीं आने पर कांग्रेस ने एक रणनीति के तहत अपने इकोसिस्टम से सिस्टमैटिक ढंग से जरूर हवा दी । रागिनी नायक ने तो प्रदेश में आकर यह भी कह दिया कि शिवराज पर उनकी ही पार्टी को भरोसा नहीं, तो जनता क्या खाक करेगी।
आचार संहिता के पूर्व दिए गए भावुक भाषणों को उनके विदाई भाषण के रूप में भी मान लिया गया। अब ,जब शिवराज सिंह चौहान को टिकट दे दिया गया तब भी कथित तौर पर कांग्रेस से जुड़े हैंडलर ने 'श्राद्ध पोस्ट' के जरिए प्रदेश में बवाल खड़ा कर दिया।
सैकड़ों योजनाओं की शुरुआत करने वाले (कांग्रेस के मुताबिक घोषणा मशीन') शिवराज सिंह चौहान को यदि पार्टी टिकट नहीं देती तो 'ओबीसी फैक्टर' की राजनीति के इस दौर में बेहद गलत संदेश जाता। इस विधानसभा चुनाव के प्रदेश में वह सबसे बड़े स्टार कैंपेनर हैं। साथ ही उन्हें टिकट नहीं दिए जाने पर जनता उनकी योजनाओं के जारी रहने पर आशंकित हो जाती।
खास तौर पर लाड़ली बहना योजना, जो बीजेपी के लिए 'गेम चेंजर' सिद्ध हो रही है, 'बैकफायर' कर जाती। इसके अलावा खुद शिवराज सिंह चौहान चुनावों में अपनी पूरी ताकत न झोंकते हुए 'हॉफ हार्टेड' जाते ,जो अंत में पार्टी के लिए नुकसानदायक सिद्ध होता। कुल मिलाकर उन्हें 'आउट ऑफ फ्रेम' रखना पार्टी 'अफोर्ड' नहीं कर सकती थी।
दरअसल, पार्टी ने हारी हुई सीटों पर शिवराज सिंह चौहान के समतुल्य अलग-अलग वर्गों से आने वाले कद्दावर नेताओं को उतार कर न केवल उनकी विधान सभा, बल्कि उनके प्रभाव वाले उस पूरे क्षेत्र को मजबूत कर दिया है। साथ ही, उनके समर्थकों में भी यह आशा की किरण जगा दी है कि उनका नेता प्रदेश का मुख्यमंत्री बन सकता है। कैलाश विजयवर्गीय और गोपाल भार्गव जैसे फायर ब्रांड नेताओं के बयान इसकी पुष्टि भी करते हैं। दरअसल, केंद्र भी उनकी क्षमताओं की परीक्षा ले कर उन्हें वस्तुस्थिति से रुबरु कराना चाहता है।
इसके साथ ही इन नेताओं के अलावा पार्टी में पांच से अधिक बार चुनाव जीतने वाले भी कई नेता मुख्यमंत्री की रेस में पहले से ही हैं। लेकिन शिवराज सिंह चौहान की बुधनी से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से अटकलों को 'ब्रेक' लग गया।
नाम लिस्ट में आने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस पर पलटवार किया कि 'हमारे तो आ गए, आपके कहां हैं, आपकी पार्टी में तो लट्ठम लट्ठा जारी है'। गौरतलब है कि एमपी में बहुत पहले से ही बीजेपी चुनावी मोड पर आ चुकी है। सारी कवायद के पीछे 2024 के आम चुनाव भी हैं, जो बीजेपी और मोदी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। इन राज्यों के बेहतर परिणाम ही नरेंद्र मोदी की वापसी सुनिश्चित करेंगे।
बीजेपी के जीतने की स्थिति में भले ही मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने की हवा चलाई जा रही है, लेकिन हो सकता है कि शिवराज सिंह चौहान को आम चुनावों तक कंटिन्यू किया जाए। यही कारण है कि चौथी लिस्ट में बीजेपी ने गुजरात पैटर्न जैसी कोई रिस्क न लेते हुए पुराने और मंजे हुए नेताओं को फिर से टिकट दिया है।
राजनीति में बेहतर पद प्राप्त करने की आकांक्षा हमेशा बनी रहती है और संतुष्टि का फैक्टर तो होता ही नहीं, लेकिन शिवराज सिंह चौहान लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने के बाद , हो सकता है कि इन स्थितियों से ऊपर निकल चुके हों। साथ ही नई भूमिका के लिए स्वयं को तैयार कर रहे हों।
पार्टी अच्छे परिणाम के आने की स्थिति में सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को पुनः केंद्र में अपनी भूमिका संभालने के लिए भी कह सकती है। ऐसे में, शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए मैदान साफ भी हो सकता है।